Saturday 8 February 2020

शाम

ढला सूरज, आई छाँव,
शाम ढले घर लौटे पाँव।
गाय रँभाती,धार लुटाती,
गौधूलि में सिमटा गाँव।
ढला सूरज................।

पनघट पनघट गीत गूँजते,
साजन के मन प्रीत पूजते ।
छलकी गागर ,उमगी पायल,
नेह  नीर में  तिरती  नाँव
ढला सूरज..................।

उठा धुँआ, सुलगी आग,
खनकी चूडी़ चढा राग।
कर मनुहार जिमाती साजन,
प्रणय मिलन से पूरित दाँव।

ढला सूरज.......................।
डॉ. नवल किशोर दुबे
जयपुर।
8949482959,  8561867557