Saturday 8 February 2020

शाम

ढला सूरज, आई छाँव,
शाम ढले घर लौटे पाँव।
गाय रँभाती,धार लुटाती,
गौधूलि में सिमटा गाँव।
ढला सूरज................।

पनघट पनघट गीत गूँजते,
साजन के मन प्रीत पूजते ।
छलकी गागर ,उमगी पायल,
नेह  नीर में  तिरती  नाँव
ढला सूरज..................।

उठा धुँआ, सुलगी आग,
खनकी चूडी़ चढा राग।
कर मनुहार जिमाती साजन,
प्रणय मिलन से पूरित दाँव।

ढला सूरज.......................।
डॉ. नवल किशोर दुबे
जयपुर।
8949482959,  8561867557

Sunday 30 July 2017

Hello to all the bloggers present here... Hope you all would like to support me learning and expertising here...